रायगढ़. सिर्फ सारंगढ़ जिला की उपलब्धि को लेकर चुनाव में उतरी कांग्रेस की घेराबंदी सारंगढ़ भाजपाईयों ने जमकर की थी। स्थानीय नेताओं ने खूब पसीना बहाया, दो दिन पहले तक जो चुनाव बराबर का लग रहा था, उसे भाजपा के एक नेता ने एकतरफा बना दिया। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी माना मुकाबला टक्कर का है क्योंकि एक पखवाड़े से सारंगढ़ में भाजपा के झारखंड के विधायक की मौजूदगी ने कार्यकर्तों को रिचार्ज किया था। लेकिन ठीक इसके बाद परिस्थितियां तब बदल गईं जब रायगढ़ के एक विवादित भाजपा नेता को सारंगढ़ का विधानसभा में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।
स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि वह सारंगढ़ सिर्फ मुहं-दिखाई के लिए आते हैं और एक निजी होटल में कुछ देर रूककर वापस रायगढ़ लौट जाते हैं। बीते 15 दिन में वह 10 दिन तो रायगढ़ में ही रहे। जब सारंगढ़ आए तो कुछ देर होटल में रूके, जब भी यहां आए तो माहौल बनाने और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को हो-हल्ला मचाया और शाम होते ही रायगढ़ लौट गए। इस बात की गवाही दीवाली के दिन ओपी चौधरी के प्रेसवार्ता देती है जब स्वंय प्रभु प्रभारी जिला भाजपा मुख्यालय में मौजूद थे। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जब धनबाद के विधायक पूरा समय सारंगढ़ में दे रहे थे उक्त अवसरवादी नेता गायब थे। कुछ कार्यकर्ताओं ने यहां तक कहा कि जब उनके नाम की चर्चा चल रही थी तब संगठन स्तर पर ही उनका विरोध होना शुरू हो चुका था पर रायगढ़ हॉट सीट में सभी का ध्यान केंद्रित होने की वजह से सारंगढ़ को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई। सारंगढ़ को स्थानीय नेताओं के हवाले छोड़ दिया गया पर एक अघोषित मॉनिटर उक्त नेता को बना दिया गया।
सारंगढ़ के स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं कि उनकी मेहनत को कोई ऐसा नेता आंक रहा है जिसे सारंगढ़ से कोई सरोकार नहीं हैं। सारंगढ़ के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां मुकाबला 2 दिन पहले तक बराबरी का था पर रायगढ़ वाले नेता ने पार्टी फंड रोका और अपनी मनमानी की जिसके कारण स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके लिए रोष व्याप्त है। कार्यकर्ता कहते हैं कि अगर हम जीत जाते हैं तो लोगों का विवेक और हमारी प्रत्याशी शिवकुमारी चौहान का औरा होगा अन्यथा हमें वॉक ओवर देने या सेल्फ गोल करवाने में माननीय ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सारंगढ़ के भाजपाई यह कहते भी नहीं चूक रहे कि जब भाजपा संगठन को पता था कि रायगढ़ के नेता की संगठन में स्थिति विवादित रही है तो उन्हें सारंगढ़ क्यों भेजा गया।
बहरहाल, कांग्रेस सारंगढ़ में दृढ़ता से आगे बढ़ रही हैं। वर्तमान विधायक के घर कभी झांक कर देखने पर पता चलता है कि उनका कद कितना बड़ा है। उत्तरी जांगड़े की सबसे खास बात यह है कि वह इस चुनाव को बराबर का और कांटे का मान कर चुनाव लड़ रही हैं और अपने स्तर पर लगातार जनसंपर्क कर चुकी हैं। चुनाव में कुछ घंटे शेष होने के बाद भी इसे हल्के में नहीं ले रही हैं। उनके पति गणपत जांगड़े भी अपनी पत्नी के कैनवासिंग में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा की कमी या फिर अंतर्कलह से उन्हें कोई सरोकर नहीं वह अपने स्तर की राजनीति कर रहे हैं।
अंतत: भाजपा कांग्रेस की स्थिति को देखकर यह लग रहा है कि कांग्रेस अपनी तमाम उपलब्धियों के बाद भी गंभीरता से चुनाव लड़ रही है और भाजपा हर संभव विपरीत परिस्थितियों के बावजूद चुनाव को हल्के में ले रही है।
*कहीं भस्मासुर तो नहीं बन गए नेता जी*
उक्त नेता ओपी चौधरी के प्रत्याशी बनाए जाने से पहले खुद को रायगढ़ सीट से दावेदार मान रहे थे। जबकि रायगढ़ का हर नेता जानता है कि यह पहले खुद के व्यापार को तवज्जों देते हैं फिर राजनीति को। व्यापार को तवज्जों देने के लिए नेताजी ने पार्टी का दामन का थामा है। जिस ओर जीत की बयार बहती है वह उस ओर हो जाते हैं क्योंकि इन्हें सिर्फ अपने फायदे से मतलब होता है। सारंगढ़ भाजपा मजबूर है। उक्त नेता की घृषठता यह कोई नहीं जानता पर यह सारंगढ़ भाजपा के लिए यह नेता जी तो भस्मासुर बन गए हैं।
क्रमशः रायगढ़ की राजनीति में बदनाम और शगल बड़े-बड़े