रायगढ़. 5मई 2023को विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक, सामाजिक संस्था आनंद मार्ग के संस्थापक, प्राउत के प्रणेता तारक ब्रम्ह बाबा भगवान श्री श्री आनंद मूर्ति जी की 102 वीं जयंती बेलादुला स्थित आनंद मार्ग आश्रम मेंआनंद मार्ग रायगढ़ शाखा के समस्त आनंद मार्गियों ने आनंद पूर्णिमा के रूप में उल्लास पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर आनंद मार्ग आश्रम बेलादुला रायगढ़ में 4 मई की शाम छ बजे से 5मई को बाबा के जन्म समय सुबह छ बजकर सात मिनट तक बारह घंटे का अष्टक्षरी महामंत्र आधारित बाबा नाम केवलम का अखण्ड कीर्तन का भक्तिमय आयोजन किया गया। तत्पश्वत आनंद वाणी का वाचन विविध भाषाओं में किया गया। हर कार्य के पीछे कोई कारण अवश्य होता है विषय पर स्वाध्याय का पाठन भी किया गया ।तदुप्रांत आचार्य करुण कृष्णानंद अवधूत ने तारक ब्रम्ह बाबा भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी के अवतरण तथा कीर्तन की महिमा पर प्रकाश डाला। इसी क्रम में सुबह आनंद मार्गियो ने बाबा द्वारा रचित प्रभात गीत गाते प्रभात फेरी निकाली गई जो आनंद मार्ग आश्रम बेलादुला से आरंभ होकर बेलादुला होते हुए मुख्य स्टेडियम से बांग्लापारा होते हुए पूना आनंद मार्ग आश्रम बेलादुला में संपन्न हुआ।तत्पश्चत श्री श्री आनंदमूर्ति जी के जन्म दिवस आनंद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में हेमू कालानी सिग्नल चौक रायगढ़ में राहगीरों को शीतल मीठा शर्बत व चने का वितरण कर आनंदमार्गियों द्वारा नारायण सेवा कार्य किया गया। वही आनन्द मार्ग आश्रम में इस अवसर पर भंडारे का भी आयोजन किया गया।जिसमें बेलादुला और आसपास के अधिक संख्या में जनमानस , भक्तगण प्रसाद स्वरूप अन्न ग्रहण किया। इस अवसर को सफल बनाने में आनंद मार्ग रायगढ़ शाखा के सभी आनंदमार्गियों का सराहनीय सहयोग ,विशेष भूमिका के साथ उपस्थिति रही।उल्लेखनीय है कि भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी का लौकिक नाम प्रभात रंजन सरकार एक आध्यात्मिक गुरु, आधुनिक लेखक, भारतीय दार्शनिक, सामाजिक विचारक,योगी, लेखक, कवि, संगीतकार और भाषाविद थे । जिनका जन्म 1921 में बिहार के जमालपुर में हुआ था।उनके शिष्य उन्हें ‘बाबा’ (“पिता”) भी कहते हैं। 1955 में उन्होने एक आध्यात्मिक और सामाजिक संगठन आनंद मार्ग (आनंद का मार्ग) की स्थापना की, जो ध्यान और योग में शिक्षा प्रदान करता है।
भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी कहते हैं
कि अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है। सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है।